कवि परिचय-”जयशंकर प्रसाद”(Jai Shankar Prasad ji ka kavi parichay)

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 जयशंकर प्रसाद

कवि परिचय-  ''जयशंकर प्रसाद'' Jai Shankar Prasad ji ka kavi parichay

 

जीवन परिचय-

जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे महान् कवि हैं,सफल उपन्यासकार एवं नाटककार हैं। छायावादी काव्य के आधार स्तम्भ हैं। रचनाकार के रूप में उनका व्यक्तित्व बेजोड़ है। आपने मानव जीवन की यथार्थ झाँकी प्रस्तुत की है। जीवन को भौतिकता की शिला से ऊपर उठाकर आध्यात्मिकता के गौरव शिखर पर आरूढ़ किया है।

वाराणसी के जाने-माने सुँघनी साहू परिवार में सन् 1889 ई.(वि.स. 1946) में जयशंकर प्रसाद ने अपनी शैशवावस्था की आँखें खोलीं। बाल्यकाल में सिर से माता-पिता का साया उठ गया। घर पर मन-चिन्तन एवं स्वाध्याय से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। सन् 1937 ई.में वह 48 साल की अल्पायु में ही काल के गाल में समा गये।

रचनाएँ

  • कामायनी (महाकाव्य),
  • लहर,
  • करुणालय,
  • आँसू,
  • झरना,

(अ) भावपक्ष–प्रसाद जी छायावाद के प्रतिनिधि कवि तथा प्रमुख स्तम्भ हैं। इनके काव्य के भावपक्ष की विशेषताएँ निम्नवत् हैं :

  1. समरसता का संदेश प्रसाद ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में समरसता का सन्देश दिया है। जैसे-जैसे मानव,जगत एवं जीवन के अखण्ड रूप से परिचित होने लगेगा,वैसे ही मनु की तरह विषमता समाप्त होने लगेगी तथा समरसता का संचार प्रारम्भ होगा।
  2. छायावाद के जनक-हिन्दी काव्य में छायावाद का शुभारम्भ करने का श्रेय प्रसाद को ही जाता है। उनकी कविता में छायावाद की सम्पूर्ण विशेषताएँ तथा चरमोत्कर्ष विद्यमान है।
  3. प्रेम-वेदना की मर्मस्पर्शी झाँकी प्रसाद के काव्य में प्रेम एवं वेदना के मार्मिक चित्र अंकित किये गये हैं। प्रिय के विरह में जिन्दगी की वाटिका नष्ट हो चुकी है। कलियाँ बिखर गई हैं तथा पराग चारों ओर फैल रहा है। अनुराग-सरोज शुष्क हो रहा है।
  4. दार्शनिकता का पुट–प्रसाद के काव्य में दार्शनिकता का पुट भी देखा जा सकता है। प्रसाद मूलतः एक दार्शनिक कवि हैं। काव्य में आनन्दवाद की बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है। दार्शनिकता की वजह से काव्य में रहस्यात्मकता का स्वाभाविक ही सामंजस्य हो गया है।
  5. प्रकृति चित्रण-प्रसाद जी ने अपने काव्य में प्रकृति के मृदु एवं कर्कश (कठोर) दोनों रूपों का जीवन्त वर्णन प्रस्तुत किया है।
  6. राष्ट्रीय भावों का चित्रण प्रसाद जी ने राष्ट्र के प्रति भी अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया है। वे प्रेम की मदिरा का पान करके भी राष्ट्र के प्रति उदासीन नहीं हुए हैं।

(ब) कलापक्ष

  1. भाषा-प्रसाद जी की भाषा परिमार्जित,व्याकरण सम्मत,संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। भाषा में माधुर्य,ओज एवं प्रसाद गुण कूट-कूट कर भरा हुआ है। भाषा भावानुकूल एवं सरस है। शब्द-चयन अनूठा है। लाक्षणिकता उनकी कविता का श्रृंगार है।
  2. अलंकार योजना प्रसाद का काव्य अनेक प्रकार के प्राचीन एवं नवीन अलंकारों से मंडित है। सभी अलंकार भाव प्रकाशन में सहयोगी हैं। परम्परागत अलंकारों के अलावा प्रसाद जी ने ‘विशेषण विपर्यय’ तथा ‘मानवीकरण’ नामक पाश्चात्य अलंकारों का भी अपने काव्य में सफल प्रयोग किया है।
  3. छन्द योजना–प्रसाद जी ने नवीन छन्दों को अपने काव्य में स्थान दिया है। ये उनकी कल्पना की उर्वरता तथा मौलिकता का प्रमाण हैं। आँसू में अपनाये गये छन्द को ‘ऑस’ छन्द के नाम से सम्बोधित करते हैं। नाद तथा तान में इनके छन्दों की तुलना संस्कृत में ‘मेघदूत’ से की जा सकती है।

साहित्य में स्थान 

प्रसाद जी का आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रमुख स्थान है। उनकी कविता में नई अभिव्यंजना शैली का मादक बसन्त अपनी शोभा बिखेर रहा है। यत्र-तत्र संगीत का मधुर नाद उल्लास की हिलोरें उत्पन्न कर रहा है। लय-तान युक्त कोमलकान्त पदावली में पीड़ा की वंशी निनादित है। समस्त प्राणियों के प्रति स्नेह एवं करुणा व्यक्त करने का आह्वान है। एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा कहानीकार के रूप में वे सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे।

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