[SET-A] MP Board 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24 PDF : एमपी बोर्ड 11वीं समाज शास्त्र अर्द्धवार्षिक पेपर 2023 असली पेपर
MP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2023 : मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित अर्द्धवार्षिक परीक्षा का आगमन शुरू हो चूका है, और विद्यार्थी सब्जेक्ट वाइज ओरिजिनल पीडीऍफ़ की तलाश कर रहे है। तो जैसा की आप सबको पता होगा 11 दिसम्बर को समाज शास्त्र का पेपर संपन्न कराया जायेगा और सभी छात्र Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न की तलाश कर रहे है ।
तो MP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न half yearly paper 2023 की तलाश कर रहे छात्रों के लिए बड़ी अपडेट सामने आ रही है, आज के इस लेख में हम आप सबको MP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न half yearly paper 2023 Original pdf प्रोवाइड करने वाले है ताकि आप सब MP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न half yearly paper 2023 के माध्यम से अपनी तैयारी पूरी करके अर्द्धवार्षिक परीक्षा में उत्तीर्ण कर सके।
एमपी बोर्ड Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24
MP Board Kaksha 12vi vishay Hindi 20 महत्वपूर्ण प्रश्न half yearly paper 2023-24: प्रिय छात्रों, आज हम आपके सामने MP Board Class 11th समाज शास्त्र Ardhvarshik Paper 2023-24 के बारे में जानकारी देने आए हैं। आज हम आपको 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2024 के संबंध में जानकारियां देंगे। यदि आप अर्द्धवार्षिक परीक्षा के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप इस पोस्ट को पूरा लास्ट तक जरूर पढ़ें।
MP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24 Real Paper
मेरे प्रिय छात्रों, जैसा की हम सभी को ज्ञात है कि MP Board Ardhvarshik exam Paper 2023 दिसम्बर महीने वर्ष 2023 में होंगे। यह टाइम टेबल माध्यमिक शिक्षा मंडल, भोपाल द्वारा जारी किया गया IMP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023 का Syllabus, Pdf & Notes आप सभी छात्रों को नीचे मिल जायेगा।
Overview – MP Board class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Paper 2023-24
Board | Madhya Pradesh Board of Secondary Education (MPBSE) |
Class | 11th |
Exam | Mp Board Half yearly Exam 2023-24 |
MP Half Yearly Exam Date | December 2023 |
Time Table | 06.12.2023 to 15.12.2023 |
Official Website | mpbse.nic.in |
एमपी बोर्ड कक्षा 11वीं समाज शास्त्र अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2023-24
प्यारे विद्यार्थियों आज इस आर्टिकल Hindi 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Class 11th Ardhvarshik Paper 2023-2024 MP Board के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि आपको अपने MP Board Class 11th समाज शास्त्र Ardhvarshik Paper 2023-2024 के अंतर्गत कुल कितने पाठ याद करने पड़ेंगे। अर्थात कुल कितना सिलेबस पूछा जाएगा, परीक्षा का पैटर्न कैसा रहेगा, इत्यादि जानकारियां आज आप यहां से लेने वाले हैं। हम आपसे पुनः कहेंगे की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको हमारे साथ अंत तक जुड़े रहना पड़ेगा।
All Subject PDF Download Class 11th Half Yearly Exam 2023-24
11वीं समाज शास्त्र के बाद नीचे दिये गये लिंक और अन्य विषय का भी pdf डाउनलोड कर सकते है।
20 महत्वपूर्ण प्रश्न 11th sociology Ardhvarshik Paper 2023-24
इस पोस्ट में हम MP Board Class 11th sociology 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik Pariksha 2023-24 प्रोवाइड कराने वाले है ताकि आप सब MP Board kaksha 12vi Hindi 20 महत्वपूर्ण प्रश्न Ardhvarshik pariksha 2023 के माध्यम से अपनी तैयारी कर अपने परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर ला सकते है। MP Board Class 12 Hindi 20 महत्वपूर्ण प्रश्न half yearly paper 2023 दिसम्बर में होने जा रहा है।
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20 महत्वपूर्ण प्रश्न 11th sociology s Ardhvarshik Paper
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प्रश्न 1. समाजशास्त्र की दो परिभाषाएँ दीजिए ।
उत्तर– (1) मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है, तथा सम्बन्धों के जाल को हम समाज कहते हैं।”
(2) दुर्खीम के अनुसार, “यह सामूहिक प्रतिनिधित्व का विज्ञान है।”
प्रश्न 2. दुर्खीम के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु बतलाइए ।
उत्तर-दुर्खीम ने समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को तीन भागों में बाँटा है-
(1) सामाजिक रचनाकार, (2) सामाजिक शरीर शास्त्र, (3) सामान्य समाजशास्त्र ।
प्रश्न 3. यथारूपेण सम्प्रदाय की कोई दो विशेषताएँ बतलाइए ।
उत्तर – यथारूपेण सम्प्रदाय की विशेषताएँ-
(1) इस सम्प्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, जो कि सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूप का अध्ययन करता है ।
(2) समाजशास्त्र एक शुद्ध विज्ञान है, जो मानव सम्बन्धो पर आधारित है ।
(3) इस मत के मानने वालों ने स्वरूप और अन्तर्वस्तु में अन्तर किया है।
प्रश्न 4. समन्वयात्मक सम्प्रदाय के बारे में सारोकिन के विचार बतलाइए ।
उत्तर- सारोकिन समन्वयात्मक सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थकों में से एक हैं । सारोकिन का विचार है कि कोई भी सामाजिक विज्ञान पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं है । वह किसी न किसी रूप में एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं । कोई भी क्रिया चाहे वह आर्थिक हो या राजनीतिक, धार्मिक हो या वैज्ञानिक या मनोरंजनात्मक, सभी क्रियाओं में कुछ तत्व सामान्य अवश्य होते हैं।
प्रश्न 5. द्वितीयक समूहों की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर- द्वितीयक समूहों की विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
(1) ये किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए जान-बूझकर बनाए गए समूह होते हैं ।
(2) सदस्यों में व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करना आवश्यक नहीं होता।
(3) इनके सदस्यों में शारीरिक निकटता बहुत कम होती है और कभी-कभी बिल्कुल नहीं होती ।
(4) सदस्यों के उत्तरदायित्व सीमित होते हैं ।
(5) अप्रत्यक्ष सम्बन्धों पर आधारित होते हैं ।
(6) आकार की दृष्टि से बहुत बड़े होते हैं।
(7) सदस्यों में व्यक्तिगत जान-पहचान प्रायः नहीं होती ।
(8) इनका निर्माण सदस्यों की आवश्यकतानुसार होता है।
प्रश्न 6. “समाजशास्त्र की विषय-वस्तु सामाजिक सम्बन्ध है।” स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को यद्यपि विभिन्न समाज- शास्त्रियों ने पृथक-पृथक भागों में विभक्त करके स्पष्ट किया है, परन्तु वास्तव में देखा जाए तो यह विभिन्नता केवल नाममात्र की है । यहाँ कुछ विद्वानों के मत व्यक्त किए गए हैं – गिन्सबर्ग के विचारानुसार समाजशास्त्र के अध्ययन में सम्मिलित किए जाने वाले सभी विषयों को चार भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) सामाजिक स्वरूप शास्त्र,
(2) सामाजिक प्रक्रियाएँ,
(3) सामाजिक नियंत्रण,
(4) सामाजिक व्याधिकी ।
दुर्खीम के अनुसार समाजशास्त्र की विषय-वस्तु को इन तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) सामाजिक स्वरूप शास्त्र,
(2) सामाजिक दैहिकी,
(3) सामान्य समाजशास्त्र ।
प्रश्न 7. समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- दोनों विज्ञानों में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी उनमें प्रमुख अन्तर निम्न हैं –
(1) समाजशास्त्र मुख्यतः सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है, जबकि अर्थशास्त्र मुख्यतः आर्थिक सम्बन्धों का अध्ययन है ।
(2) समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का सामान्य रूप से अध्ययन करता है, जबकि अर्थशास्त्र मानव के केवल आर्थिक पहलू का ही विशेष रूप से अध्ययन करता है ।
(3) इस प्रकार समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है, जबकि अर्थशास्त्र का क्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है ।
(4) समाजशास्त्र के अध्ययन में मुख्यतः सामाजिक सर्वेक्षण, सामाजिक अनुसंधान, व्यक्तिगत जीवन-पद्धति, निरीक्षण पद्धति आदि पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में मुख्य रूप से आगमन व निगमन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है ।
प्रश्न 8. समाजशास्त्र विज्ञान नहीं है। तर्क दीजिए।
उत्तर – समाजशास्त्र विज्ञान नहीं है इसके लिए निम्न तर्क दिए जा सकते हैं
- सार्वभौमिकता का अभाव – समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति के विरुद्ध एक आपत्ति यह भी उठाई जाती है कि सामाजिक घटनाओं में सार्वभौमिकता के गुणों का अभाव होता है । भौतिक घटनाएँ सार्वभौमिक होती हैं । जैसे – ऊपर से पत्थर फेंकने पर नीचे ही गिरेगा । दिन के बाद रात होगी परन्तु
सामाजिक घटनाओं में ऐसा नहीं होता, क्योंकि एक ही नए परिस्थिति में अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है । इसके फलस्वरूप एक स्थान के अध्ययन के क आधार पर निकाले गए परिणाम दूसरे स्थान पर सत्य नहीं बैठते । अतः सार्वभौमिक गुणों के अभाव में समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं य माना जा सकता ।
- प्रयोगशाला पद्धति का अभाव – समाजशास्त्र की के वैज्ञानिकता के विरुद्ध आरोप यह लगाया जाता है कि इसमें प्रयोगशाला का अभाव होता है । प्राकृतिक विज्ञान में घटनाओं नका अध्ययन प्रयोगशाला में बैठकर किया जा सकता है । परन्तु तू हम समाज के किसी भाग को हाथ में लेकर तथा उसको विभिन्न कोणों से देखकर इस प्रकार हल नहीं कर सकते जिस प्रकार अन्य विज्ञानों में किया जा सकता है । सामाजिक घटनाओं का । अध्ययन करने के लिए न तो भीड़ एकत्रित की जा सकती है और । न समाज के व्यक्ति पर प्रभाव देखने के लिए 10-20 वर्ष तक किसी बच्चे को कमरे में बन्द रखा जा सकता है ।
- भविष्यवाणी करने में असमर्थ – समाजशास्त्र में – भविष्यवाणी करने की क्षमता नहीं होने का एक अन्य आरोप – इसकी वैज्ञानिक प्रकृति के विरुद्ध लगाया जाता है । सामाजिक घटनाएँ अत्यन्त तीव्र गति से परिवर्तित होती हैं । ऐसी स्थिति में समाजशास्त्रीय नियम किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी करनेकी स्थिति में नहीं रहते । इस प्रकार भविष्यवाणी करने में योग्य नहीं होने के कारण इसे विज्ञान नहीं माना जा सकता ।
4.सामाजिक घटनाओं की माप की कठिनाई- समाजशास्त्र की प्रकृति को वैज्ञानिक इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सामाजिक घटनाओं और सामाजिक सम्बन्धों की माप-तौल नहीं की जा सकती, क्योंकि ये अमूर्त होते हैं, अतः इनको अनुभव किया जा सकता है, यथार्थ विज्ञान की भाँति मापा नहीं जा सकता । अतः समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक नहीं कही जा सकती है ।
प्रश्न 9. समाज की परिभाषा दीजिए तथा समाज एवं एक समाज में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- समाज की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
- ड्यूटर- “समाज वह अमूर्त शब्द है, जो किसी समूह के दो या सभी सदस्यों के बीच पाये जाने वाले जटिल पारस्परिक सम्बन्धों का बोध कराता है।”
- मैकाइवर एवं पेज- “समाज-रीतियों, कार्य प्रणालियों अधिकार एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूह और उनके विभागों, मानव व्यवहार के नियन्त्रणों और स्वतन्त्रताओं की व्यवस्था है ।”
- जिन्सबर्ग- “समाज ऐसे व्यक्तियों का संग्रह है, जो कुछ सम्बन्धों के व्यवहार की विधियों द्वारा संगठित हैं तथा उन व्यक्तियों से भिन्न हैं, जो इस प्रकार के सम्बन्धों द्वारा बँधे हुए नहीं हैं या जिनके व्यवहार उनसे भिन्न है।”
समाज तथा एक समाज में अन्तर निम्न है-
(1) समाज से तात्पर्य सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है, जबकि एक समाज का तात्पर्य व्यक्तियों के समूह से है ।
(2) समाज अमूर्त है जबकि एक समाज मूर्त है ।
(3) समाज का कोई नाम नहीं होता है, जबकि एक समाज का नाम होता है ।
(4) समाज का आकार विशाल होता है, जबकि एक समाज का आकार छोटा होता है।
प्रश्न 10. परिवार का अर्थ समझाइए एवं एक परिभाषा लिखिए ।
उत्तर-परिवार का अर्थ- परिवार अँग्रेजी भाषा के ‘Family’ का हिन्दी रूपान्तर है, जो लेटिन भाषा के ‘Famulus’ से निकला है । इसका अर्थ है, माता-पिता बच्चों का समूह ।
परिवार की परिभाषा – मैकाइवर व पेज के अनुसार, ‘परिवार यौन सम्बन्धों के द्वारा परिभाषित किया जा सकता है तथा इतना छोटा व स्थायी होता है कि बच्चों की उत्पत्ति तथा उनके पालन पोषण से सम्बन्धित रहता है।”
प्रश्न 11. राज्य की परिभाषा दीजिए तथा आवश्यक तत्व बतलाइए ।
उत्तर- गार्नर के अनुसार, “राज्य थोड़े या बहुत से लोगों का समुदाय है जो कि एक निश्चित भू-भाग पर स्थायी रूप से रहता हो, जो बाहरी दबाव से पूर्णतया स्वतंत्र हो तथा जिसमें एक स्वतन्त्र सरकार विद्यमान हो, जिसके आदेशों का पालन स्वाभाविक रूप से करता हो।”
राज्य के आवश्यक तत्व –
(1) जनसंख्या, (2) भू-भाग, (3) सरकार, (4) प्रभुसत्ता ।
प्रश्न 12. बहु-विवाही परिवार से क्या तात्पर्य है ? ये किन जनजातियों में पाये जाते हैं ?
उत्तर- बहु-विवाही परिवार- जब एक स्त्री या पुरुष एक से अधिक पुरुषों या स्त्रियों से विवाह करे तो ऐसे विवाह से उत्पन्न परिवार को ‘बहु-विवाह परिवार’ कहते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं-
(1) बहु-पति विवाही परिवार, (2) बहु-पत्नी विवाही
प्रश्न 13. मातृवंशीय परिवार किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-मातृवंशीय परिवार- ऐसे परिवार जिनमें बच्चे अपने पिता के कुल या वंश के नाम के बजाय अपनी माता के कुल या वंश का नाम ग्रहण करते हैं, मातृवंशीय परिवार कहलाते हैं ।
प्रश्न 14. आदर्श प्रारूप का अर्थ लिखिए ।
उत्तर- आदर्श प्रारूपं का तात्पर्य कुछ वास्तविक तथ्यों के तर्कसंगत आधार पर यथार्थ अवधारणाओं का निर्माण करना है । आदर्श शब्द का कोई भी सम्बन्ध किसी प्रकार के मूल्यांकन से नहीं है । विश्लेषणात्मक प्रयोजन के लिए कोई भी वैज्ञानिक किसी भी तथ्य या घटना के आदर्श प्रारूप का निर्माण कर सकता है चाहे वह वेश्याओं से सम्बन्धित हो या धार्मिक नेताओं से ।
प्रश्न 15. आधुनिक समय में परिवार के कार्यों में क्या परिवर्तन हो रहा है ? कोई तीन बताइए ।
उत्तर- आधुनिक समय में परिवार के परम्परागत कार्यों में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं । परिवर्तन इस प्रकार हैं-
- आर्थिक कार्यों में परिवर्तन – पहले परिवार अर्थोपार्जन की महत्वपूर्ण इकाई था । अब यह केवल उपभोग का कार्य करता है। उत्पादन सम्बन्धी कार्य परिवार से समाप्त हो गये हैं । ये कार्य व्यापारिक संस्थान करने लगे हैं । खाना बनाने का कार्य भी होटलों व रेस्टोरेन्ट आदि ने ले लिया है ।
- सामाजिक कार्य- वर्तमान समय में सामाजिक कार्यों में भी तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं । समाजीकरण का कार्य अब स्कूल एवं कॉलेज तथा अन्य संस्थाएँ करने लगी हैं । परिवार के अनौपचारिक नियन्त्रण के साधन भी अब कम प्रभावशील होते स्थान पर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का महत्व बढ़ रहा है ।
- धार्मिक कार्य – परिवार अब धार्मिक केन्द्र नहीं रहा है । धर्म की रूढ़िवादी प्रवृत्ति आधुनिक परिवार में समाप्त-सी हो रही है । धर्म का कार्य धार्मिक संस्थाओं ने ले लिया है ।
प्रश्न 16 “संस्कति हस्तांतरणशील होती है ।” समझाइए ।
उत्तर – भौतिक और अभौतिक दोनों संस्कृतियाँ पीढ़ी-दर-पढ़ी हस्तान्तरित होती रहती है । संस्कृति के हस्तान्तरण में भाषा, धर्म और प्रतीकों का प्रमुख योगदान रहता है । संस्कृति के हस्तान्तरण में भाषा, धर्म और प्रतीकों का प्रमुख योगदान रहता है । इन्हीं के माध्यम से मानव कला, ज्ञान, साहित्य, दर्शन तथा अपनी परम्पराओं, प्रथाओं और जीवनयापन की वास्तविक विधियों से पूर्ण परिचित है।
प्रश्न 17. समाजीकरण करने वाली संस्थाओं को बतलाइए ।
उत्तर- समाजीकरण करने वाली प्राथमिक व द्वितीयक संस्थाएँ है हैं। प्राथमिक संस्थाओं में परिवार, क्रीड़ा समूह, पड़ोस, स्कूल में आदि हैं, जबकि द्वितीयक संस्थाओं में राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक संस्थाएँ प्रमुख हैं ।
प्रश्न 18. समाजीकरण में ‘क्रीड़ा समूह’ की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- समाजीकरण करने वाला दूसरा प्राथमिक प्रमुख क्रीड़ा- न्य समूह है । बच्चों का सम्पर्क अपने खेल के साथियों से होता है और उसे विभिन्न आदर्शों, रुचियों तथा स्वभाव वाले दूसरे बालकों के साथ अनुकूलन करना पड़ता है ।
इससे बच्चे में नो अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण अथवा अपनी इच्छाओं का दमन वा करने की शक्ति विकसित होती है । खेल में विजय और पराजय से के बच्चे में दो महत्वपूर्ण सामाजिक गुण पनपते हैं- एक शासन करने ता या नेतृत्व करने का और दूसरे, कभी-कभी परिस्थिति के अनुसार ने स्वयं दूसरे का अनुसरण करने का ।
ये गुण बच्चे को आगे चलकर क समाज की लगभग प्रत्येक स्थिति से अनुकूलन करने की क्षमता ान प्रदान करते हैं। प्रायः देखा गया है कि क्रीड़ा-समूहों में लोकप्रिय । और कुशल सिद्ध होने वाले बच्चे भविष्य में भी जीवन में सफल , व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं ।
जो नई-नई बातें बच्चे परिवार में व नहीं सीख पाते, वे अपने खेल-साथियों अथवा मित्रों के समूह में की हीं उन्हें जानने को मिल जाती हैं। ब्रूम तथा सेजनिक ने लिखा है कि मित्रों के समूह में सामाजिकता , सीखी जाती है । हम सहयोग और सहिष्णुता स्वतः ही मित्रों के न समूहों में सीखते चले जाते हैं।
बच्चे के लिए मित्रों के समूह न मिलने-जुलने की दृष्टि से तथा समाजीकरण के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं- विशेषकर आधुनिक जटिल समाज में जहाँ कि नगरीय परिवार छोटे होते हैं और बाह्य समाज से भी इनका सम्पर्क कम होता है । मित्रों के समूह से वह ज्ञान भी मिल जाता है जो परिवार में नहीं मिल पाता ।
प्रश्न 19. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के महत्व का वर्णन मे कीजिए ।
उत्तर – वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का महत्त्व इस प्रकार है-
- समस्या का सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन- वैयक्तिक अध्ययन नि पद्धति के द्वारा व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है । यह अध्ययन गहन एवं विस्तृत होता है । इसके द्वारा छोटी घटना मे का भी व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है । इसके अन्तर्गत घ जाति, वर्ग आदि का गहन अध्ययन किया जाता है ।
- विभिन्न अध्ययन प्रविधियों का उपयोग- इस पद्धति के द्वारा अनुसंधानकर्ता सभी उपयोगी प्रविधियों के द्वारा सूचनाओं का संकलन करता है, उनमें प्रश्नावली, साक्षात्कार, जीवन, इतिहास, प्रलेख आदि उल्लेखनीय हैं । इनके द्वारा अध्ययन सरल हो जाता है ।
- प्रारम्भिक अध्ययन में उपयोगी- किसी बड़े अध्ययन को प्रारम्भ करने पर कुछ व्यक्तिगत मामलों की जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है । इससे अनेक अदृश्य अथवा अप्रत्यक्ष तथ्यों को प्रदर्शन करना सम्भव होता है । अध्ययन इकाइयों की प्रकृति में यह विधि भी लाभप्रद होती है । इसे “सामग्री संकलन” की विधि भी कहते हैं ।
- नए अनुभवों का ज्ञान- इस पद्धति के द्वारा अनेक व्यक्तियों, अपराधी, वेश्या, बाल-अपराधी आदि का अध्ययन किया जाता है। अनुसंधानकर्ता इससे उनके जीवन के मूल्यों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है
प्रश्न 20. सामाजिक प्रगति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- सामाजिक प्रगति की विशेषताओं का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है
- वांछित उद्विकास – उद्विकास किसी भी दिशा में निरन्तर परिवर्तन है परन्तु किसी लक्ष्य विशेष की ओर जो परिवर्तन होता है, प्रगति कहलाता है । अतः प्रगति सदैव उन्नति की ओर परिवर्तन है ।
- तुलनात्मक – प्रगति का अर्थ प्रत्येक समाज में एक सा नहीं होता । इसका माप समाज के मान्यता प्राप्त मूल्यों द्वारा मान्यता प्राप्त लक्ष्यों की प्राप्ति से किया जाता है।
- सामूहिक जीवन से सम्बन्धित – प्रगति किसी व्यक्ति, वर्ग या जाति विशेष की उन्नति नहीं है, अपितु समाज में समस्त समूह के मूल्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता को ही प्रगति कहा जाता है ।
- स्वचालित नहीं – लक्ष्य निर्धारित करने के पश्चात् उन्हें प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयत्न किये जाते हैं । अतः प्रगति स्वयं होने वाला परिवर्तन नहीं है, अपितु मानव के सक्रिय प्रयत्न और परिश्रम का ही फल है ।
प्रश्न 21. सामाजिक उद्विकास की वास्तविकता को बताइए।
उत्तर- सामाजिक उद्विकास की वास्तविकता को निम्न आधारों पर समझा जा सकता है
(1) सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक ढाँचे में होते परिवर्तनों को उद्विकास की प्रक्रिया से नहीं समझा जा सकता ।
(2) सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारण संस्कृति में होने वाला प्रसार हैं, इसे उद्विकासीय क्रम के द्वारा स्पष्ट नहीं किया जा सकता।
(3) विकास के विभिन्न स्तर सभी समाजों में एक समान नहीं रहे हैं।
(4) सामाजिक जीवन प्रत्येक परिवर्तन के साथ अनिवार्य रूप से जटिल नहीं हो पाता । ज्यादा से ज्यादा इसकी सम्भावना ही की जा सकती है
(5) अधिकतर समाजशास्त्रियों की धारणा है कि सामाजिक परिवर्तन को उद्विकास के द्वारा नहीं बल्कि आविष्कारों, संचय प्रवृत्ति, सांस्कृतिक प्रसार और अभियोजन की प्रक्रिया के आधार पर ही समझा जा सकता है ।
(6) उद्विकास का सिद्धान्त स्वयं में एक भ्रमपूर्ण धारणा है ।
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